Wednesday, January 5, 2011

आज जो होती मैं पास तुम्हारे-

आज जो होती मैं पास तुम्हारे-
सूरज के कुछ धूप सुलगा कर, और धरती की कुछ खुशबु लेकर, इस दिन को बुलाती तेरे घर...और मिन्नत करती उससे
यूँ ही सदियों तक आने को

आज जो होती मैं पास तुम्हारे-
चूम के तेरे चाँद से माथे को, चाँद ही उतार लाती मैं आँगन में तेरे...तेरा घर सजाने को

आज जो होती मैं पास तुम्हारे-
पलकों पे तुम्हारी अपनी पलके सजा के,
तुम्हारी आँखों से वो सारे ख्वाब चुनती, उन्ही ख़्वाबों की एक चादर बुनती...तुझे ओढाने को

आज जो होती मैं पास तुम्हारे...

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