Saturday, July 24, 2010

मैं और तुम....

मैं कितनी ही बूँदों से भरी हुई एक नदी सी
उछलती भी हूँ, बहती भी हूँ
कभी उफान पर हूँ तो कभी छिछली सी
कितने भंवर भी हैं मुझमें
और कभी स्वच्छ, शांत, निर्मल सी
बहते रहना मेरी क़िस्मत
और मेरी फ़ितरत भी


थक सी जाती हूँ कभी कभी....



तुम क्यों बाहें फैलाए खड़े हो यहाँ से वहाँ तक,
दूर से ही दिखते हो,
तुम्हारी ही तरफ बह रहे हैं मेरे क़दम बरबस
कहीं तुम्हारा नाम समंदर तो नहीं?????

Friday, July 23, 2010


एक काफ़िर दोस्त की तरफ से -



में ज़िन्दगी की बारिश में हरदम सराबोर रहती हूँ..
कुछ बूँदें हैं प्यार की
कुछ दोस्ती की
कुछ अपनों से अनबन की
कुछ गैरों से मोहब्बत की
कुछ बचपन के मासूमियत की
कुछ जवानी के पागलपन की

ये बूँदें साथ चलती हैं हमेशा मेरे
में इन बूंदों में भीगी हुई रहती हूँ हमेशा



इनमें से कुछ बूंदों ने सयाना बनाया हैं तो कुछ बांवरी थी जिन्होंने बताया के ज़िन्दगी किताबों के बाहर भी होती हैं...
बस येही पेश कर रही हूँ....
उम्मीद हैं आपको कहीं न कहीं अपनी ज़िन्दगी का अक्स दिखाई देगा इनमें...