मैं कितनी ही बूँदों से भरी हुई एक नदी सी
उछलती भी हूँ, बहती भी हूँ
कभी उफान पर हूँ तो कभी छिछली सी
कितने भंवर भी हैं मुझमें
और कभी स्वच्छ, शांत, निर्मल सी
बहते रहना मेरी क़िस्मत
और मेरी फ़ितरत भी
थक सी जाती हूँ कभी कभी....
तुम क्यों बाहें फैलाए खड़े हो यहाँ से वहाँ तक,
दूर से ही दिखते हो,
तुम्हारी ही तरफ बह रहे हैं मेरे क़दम बरबस
कहीं तुम्हारा नाम समंदर तो नहीं?????
AMAZING...SIMPLY WOW
ReplyDeleteThanx :)
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